मर्यादेयं विराजते

Janta Raja    17-Oct-2022
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mudra
 
शिवाजीराजे के नाम का सिक्का बन गया | राजमुद्रा भी तैयार हुई | पुणे के लाल महल से राजमुद्रांकित आज्ञापत्र जारी होने लगे | राजे की मुद्रा संस्कृत भाषा में बनाई गई थी | लिखा था,
प्रतिपच्चन्द्रलेखेव वर्घिष्णुर्विश्ववन्दिता
शाहसूनो: शिवस्यैषामुद्रा भद्राय राजते ||
अर्थ : शाहजी पुत्र शिवाजी की यह मुद्रा लोक कल्याण के लिए विराजित है| प्रतिपदा के चंद्र की तरह उसको धारण करने वाले (अर्थात् शिवाजीराजे) की प्रसिद्धि प्रतिदिन बढ़ती जाएगी और वह विश्व में वंदनीय होगा|
इतिहास : शाहजीराजे ने शिवाजीराजे को यह मुद्रा दी थी, जिसे शिवाजी ने मावल में स्थित अपनी छोटी सी जागीर का संचालन प्रारंभ करते समय उपयोग करना शुरू किया था| स्वराज्य स्थापना, राज्याभिषेक व उसके बाद के समय में भी वे शासकीय कार्यों में इसका निरंतर प्रयोग करते रहे अर्थात् यह जीवनपर्यंत उनकी राजमुद्रा रही|
पत्र के अंत में अंकित होने वाला राजे का सिक्का भी विनम्र था | उसका मजमून था “मर्यादेयं विराजते” | उस वक्त पत्र मराठी की मोड़ी लिपि में लिखे जाते थे |
संदर्भिका : महाराज – लेखक बाबासाहेब पुरंदरे, अनुवादक (मूल मराठी से) – सौ. सुनिता कट्टी